कोरोना वायरस के गंभीर संकट ने चीनी मिलों का स्वाद भी कड़वा कर दिया है। चीनी उद्योग में अलग तरह का भय है। घरेलू जिंस मंडी से लेकर वैश्विक बाजार तक की मांग में भारी गिरावट से चीनी की कीमतें धराशायी हो गई हैं। घरेलू स्तर पर सामाजिक आयोजनों से दूरी, आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक्स जैसे उत्पादों पर परोक्ष स्वत: पाबंदी लग गई है। इसके चलते बड़े उपभोक्ताओं की मांग में भारी कमी आने से चीनी मिलों की हालत पस्त होने लगी है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के भाव 22 फीसद तक गिरे
घरेलू बाजार में चीनी का मूल्य लगातार नीचे खिसक रहा
नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइक नवरे ने ऐसी परिस्थिति पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने बताया कि 24 फरवरी को चीनी का निर्यात मूल्य 425 डॉलर (29,750 रुपये) प्रति टन था, जो ठीक एक महीने बाद यानी 24 मार्च को घटकर 355 डॉलर (24,850 रुपये) प्रति टन से भी नीचे बोला जा रहा है। कमोबेश यही हालत कच्ची चीनी के निर्यात बाजार का भी है। घरेलू बाजार में चीनी का मूल्य लगातार नीचे खिसक रहा है। निर्यात के लिए बेची जा रही चीनी का एक्स-मिल मूल्य 300 रुपये प्रति क्विंटल तक घट गया है, जबकि माना जा रहा था कि कई सालों बाद चीनी बाजार में तेजी का रुख रहने वाला है।
देशव्यापी लॉकडाउन की स्थिति में बिक्री में तेज गिरावट आई
कोरोना के प्रकोप से बचाव के लिए उठाए गए कदमों के तहत देशव्यापी लॉकडाउन की स्थिति है। सावधानी बरतने के तहत सामाजिक, धार्मिक और सार्वजनिक समारोहों पर पाबंदी लगा दी गई है। पहले से तय शादियों की तिथि आगे बढ़ा दी गई है। कोरोना वायरस से बचाव में आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक्स न पीने की लगातार सलाह की वजह से इन आइटमों की बिक्री में तेज गिरावट आई है। ऐसे में कच्चे माल के तौर पर चीनी का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों के समक्ष भी संकट है। शुगर फेडरेशन ने इस बाबत सरकार को पत्र लिखकर चीनी निर्यात के लिए जारी कोटा की आखिर तिथि और दी जाने वाली निर्यात रियायत में छूट को आगे भी जारी रखने की मांग की है।